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Thursday, 8 March 2012

"महिला दिवस कितना सार्थक---ज्योति डांग

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"महिला दिवस कितना सार्थक ................................................... पूरे विश्व में आज का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जा रहा है आज हमारे देश में भी महिला दिवस , महिला सशत्तिकरण की बातें की जाती हैं उनको सामान अधिकार दिए जाने की चर्चा चहुँ और हो रही है इस दिन पूरे देश में आयोजन किये जाते हैं ,महिला के अधिकारों पर नेता , वक्ता बड़े बड़े भाषण देते हैं . क्या सही मायने में हम लोग यह दिवस मना पाते है सिर्फ भाषण देने से , बड़ी बड़ी बातें कह देने से महिलाओं को उनके अधिकार पूर्णरूप से मिल जायेंगे ?नहीं आज भी औरतों को उनके अधिकार नहीं मिल पाये , आज भी पूरे देश में लड़किओं को जन्म से पहले गर्भ में मार दिया जाता है .कई घरों में एक बेटे की चाह में लड़किओं की लाइन लगा दी जाती है आज भी महिला घर से बहार कदम निकालती है , अपनी पहिचान बनाने के लिए . तो उसको कदम कदम पर मुश्किलों से दो चार होना पड़ता है.कई बार तो परिवार वालों की जली कटी बातें सुननी पड़ती हैं . आज भी पुरषों के समान अधिकार पाना बहुत मुश्किल है आज भी कई धार्मिक स्थान ऐसे हैं यहाँ औरतों का जाना वर्जित है उदहारण सवरूप हनुमान जी को एक महिला छू नहीं सकती क्यूँ ? पूछो तो उत्तर मिलेगा हनुमान जी ब्रह्मचारी थे .यदि ऐसा है तो विवाहित पुरष क्यूँ उनके चरण सपर्श करते हैं ?सोचिये हनुमान जी परमात्मा का एक रूप हैं उनको छूना , उनके चरण सपर्श करना परमात्मा का आशीर्वाद लेने के समान है तो इस में कोई महिला न छूए , ये कहाँ का इन्साफ है भारत में आज भी कई गाँव ऐसे हैं यहाँ औरतों को डायन मानकर पत्थर मारे जाते हैं उनको नंगा करके घुमाया जाता है कई बार इतने जुल्म किये जाते हैं कि उनकी मौत हो जाती है ऐसी दुर्घटनाएं आये दिन देखने सुनने को मिल जाती हैं .आज भी हमारे गाँवों में बाल विवाह प्रथा जस की तस मौजूद है . जिस देश में नारी को देवी मानके पूजा जाता है वहीँ ऐसी शर्मनाक कुरीतिया ,प्रथाएं मौजूद हैं एक दिन महिला दिवस के नाम पे मनाने से ,बड़े बड़े भाषण देने से औरतों को उनके अधिकार नहीं मिल जायेंगे . इसकी शुरुआत हमें अपने घर से, आसपास से करनी होगी हम औरतों को दया की नहीं अपितु जो हमारा स्थान है और हमारे अधिकार हैं , जिसकी हम हक़दार हैं वो चाहिए तभी सही मायने में महिला दिवस सार्थक बन पायेगा 




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